Saturday, August 1, 2009

कयूंकर उस बुत से रखूं जान

70,1}
कयूंकर उस बुत से रखूं जान `अज़ीज़कया नहीं है मुझे ईमान `अज़ीज़
{70,2}
दिल से निकला पह न निकला दिल सेहै तिरे तीर का पैकान `अज़ीज़
{70,3}
ताब लाए ही बनेगी ग़ालिबवाक़ि`अह सख़त है और जान `अज़ीज़

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